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Sudasha Vrat Katha 2022 | सुदर्शा व्रत के दिन इस कथा को पढ़ने या सुनने से माता लक्ष्मी करती है धन की वर्षा


Sudasha  Vrat  Katha 2022
 
इस साल सुदर्शा  व्रत पर शुभ सन्योग बन रहा है।इस दिन लक्ष्मी माता की पूजा कर बरत धारण किया जाता है आज के दिन लक्ष्मी माता की  विशेष पूजा अर्चना की जाती है । यह हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रत होता है।


Sudasha Vrat 2022 में कब मनाया जाएगा?
सुदर्शा व्रत  9 जून  2022                                                                                                                                     
यह हर साल अलग-अलग तारीख पर मनाया जाताहै इसके तारीख का पता  लगाने के लिये  हमें महिने मे होने वाले अमावस्या और पूर्णिमा के  बारे मे जानकारी होनी आवश्यक है महीने का शुरु का 15 दिन अमावस्या का होता है जिसे कृष्ण पक्ष कह्ते है और बाद का 15 दिन  पूर्णिमा  का होता है जिसे शुक्ल पक्ष कहा जाता है ।जब कृष्ण पक्ष  के सोमवार को अमावस्या  होता है तो उसे सोमवती  अमावस्या  कहते है  और फिर जो शुक्ल पक्ष का  दसमी गुरुवार आता है उसी दिन सुदर्शा व्रत की पूजा की जाती है।
   Sudasha Vrat की विधि -इस पूजा  में घर की सफाई की जाती है गोबर से घर को लिपा जाता है । इस पूजा में चावल को भिगोंकर उसे पीसकर फिर उस घोल से विशेष  प्रकार की रंगोली बनाई जाती  है जिसे छत्तीसगढ और ओडिसा मे चौंक पुर्ना भी कहते है। इस रंगोली के उपर  लक्ष्मी माता का आसन लगाया जाता है उस आसन मे दस अंजुरी या मुठा चावल को रखकर उस चावल के ऊपर माता को विराजित करते है। कलश की स्थापना किया जाता  है। अब माता की पूजा कर व्रत की कहानी को पढा जाता है प्रसाद लगाया जाता है। सुदर्शा व्रत की में २ बरत लिया जाता है जिसे सुदर्शा व्रत की कथा के पूरा होने के बाद लक्ष्मी माता के १० नामो  का स्मरण कर धारण किया जाता है और इस  प्रकार पूजा की विधि पूरी की जाती है।
               
  Sudasha Vrat  के लिये पूजा की सामाग्री-  .एक दीया जिसमें दस बत्ती को घी में डूबोकर रखना है।२.सिंदूर,चंदन।
३.10 दूबी।
४.10 पीला चावला।
५. 2 धागानुमा बरत ।
६. कमल फूल।
७. नारियल।
  Sudasha Vrat में चढाया जाने वाला प्रसाद लक्ष्मी माता के इस पूजा में जो प्रसाद  माता को,लगाया
जाता है वह बहुत विशेष प्रकार का होता है यह चावल  या सूजी का बनता है इसमें खोआ का प्रयोग किया जाता है
इसे मंडा के नाम छत्तीसगढ और ओडिसा में जाना जाता है ।10मंडा,केला,खीर तथा पंचामृत को प्रसाद के रुप में लगाया जाता है मंडा माता लक्ष्मी का प्रिय प्रसाद में से एक माना जाता है।

 Sudasha Vrat की पूजा इस कथा को पढे बिना नही हो पाती है पूरी
किसी भी व्रत को उसके कथा के बिना पूरा नही किया जा सकता । कथा पाठन के  बाद ही उस  व्रत को पूरा किया जा सकता है Sudasha  Vrat की कथा को पढ्कर महिलाये बरत को धारण करती है और पूजा को समाप्त करती हैं। आइए जाने  Sudasha  Vrat के पीछे की कहानी प्राचीन  भारत में एक अवंती नगर हुआ करता था  वहाँ विष्णुकर नाम का एक ब्राहम्ण निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम लक्ष्मीवती था।लक्ष्मीवती माता का सुदर्शा व्रत रहा करती थी और उनकी आस्था से माता लक्ष्मी भी बहुत  प्रसन्न रह्ती थी।ब्राह्म्णी पर  माता लक्ष्मी की बहुत कृपा रह्ती थी। सभी सुख और सुविधा उनके पास थी।माघ मास के शुक्ल्पक्ष के दसमी गुरुवार को सुदर्शा व्रत फिर आता हैऔर ब्रह्म्णी पूजा की तैयारी करने लगती है ब्राह्मणी सुबह होते ही स्नान कर्नेऔर पूजाके लिये पानी लेने जाती है तब अचानक ब्राह्मणी  से उसका पहना हुआ बरत निकल जाताहैऔर कही पर गिर जाता है वह उस बरत को बहुत खोजने का प्रयास करती है  पर उसे बरत प्राप्त नहीं हो पाता तभी  ब्राह्मणी    की नजर एक चील पर पड्ती है चील उस बरत को लेकर जंगल की ओर भागता  है पीछे ब्राह्मणी भी जाती है पर चील को पकड नही पाती और बहुत  रोती है।
                             जंगल में  नल नाम का एक राजा शिकार करने के लिये आयाहोता है वह ब्राह्मणी  को रोता हुआ देखता है  और उससे पूछता है कि क्या हुआ तुम क्यो  रो रही हो  ब्राह्मणी  उसे पूरी बात कह्ती हैऔर उस  राजा सेवचन लेती है कि वे उसे उसका व्रत लाकर देंगे  राजा भी ब्राह्मणी  को कह्ता है कि मै इस वचन को पुरा करुंगा अब ब्राह्मणी  राजा के साथ उसके राज्य जाती है राजा  ब्राह्मणी  को बैठने को कहता है औरअपनी पत्नी दम्यंति के पास जाकर उससे कहता है कि वह  अपना पहना हुआ बरत निकाल कर उसे  दे रानी राजा को समझाती है और कहती है कि ऐसा करना सही नही होगा। मैं अपना बरत  नही दे सकती पर राजा उस बरत को छींकर रानी के हाँथो से ले लेता हैऔर ब्राह्मणी को दे देता है। ब्राह्मणी वहाँ से खुशी-खुशी चली जाती है।
                           कुछ दिनो के बाद राजा अपना  राज्य हार जाता है राजाऔर उसका  परिवार गरीब हो जाते है। राजा और उसकी पत्नी सहित एक बेटा  सभी रानी दम्यंति के  पिता के पास जाते है तभी रास्ते मे एक नदी आती है। उस नदी को पार करते समय राजा के बेटे को  मगरमच्छ निगल जाता है और राजा भी अपनी पत्नी से बिछ्ड जाता है। इस बरत के खो जाने पर राजा का सब नष्ट हो जाता है।
                         सन्योग ऐसा होता है कि राजा नल एक राज्य में पहुंचते है उस राज्य के राजा का नाम भीम था।
नल राजा उस राज्य में नौकरी करते है।रानी दम्यंति भी सन्योग से उसी राज्य जाती है ।रानी दम्यंति  उस राज्य के रानी की दासी का काम करती है। ऐसे दोनो अपना जीवन चलाते है। फिर भाद्र  मास के शुक्लपक्ष में दसमी  गुरुवार  यानि सुदर्शा व्रत आता है।रानी फिर से  सुदर्शा व्रत  का उपवास रहती है। इस पूजा को रानी पूरे विधि के साथ पूरा करके बरत को  धारण करती है। सुदर्शा व्रत  की महीमा से राजा रानी फिर मिल जाते हैऔर उनका खोया हुआ बेटा भी जीवित होकर उसी नदी के पास मिलता है। इस प्रकार राजा नल और रानी दम्यंति फिर से अपने राज्य में राज करते है। सुदर्शा व्रत का महत्व हमारे धार्मिक ग्रंथो  में भी पाया गया है।जो भी स्त्री इस  व्रत   को विधिवत रहती है और बरत  धारण करती है उस  पर माता लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रह्ती है।


 Sudasha Vrat की पूजा में लिये जाने वाले लक्ष्मी माता के १० नाम
  1. लक्ष्मीनारायण।
  2. कमलिनी।
  3. श्री हरि प्रिया।
  4. पद्मलया।
  5. कमला।
  6. चंचला।
  7. विध्नसेनी।
  8. सिंदूर दोलणी[समुद्र की पुत्री]।
  9. दुर्गति नासिनी।
  10. विष्णु पटरानी।
          आभार‌‌- इस पोस्ट में हमारे साथ बने रहने के लिये आप सभी का धन्यवाद ऐसी खबरो  की  जानकारी पाने के लिये  हमारे साथ बने रहे।                                                                                                                                                                                           

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