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बहुला चतुर्थी व्रत कथा। निसंतान महिलाओ के लिये किया जाने वाला व्रत। बहुला चतुर्थी व्रत कि पुरी विधी विस्तार से

बहुला चतुर्थी व्रत कब होने वाला है ?२०२२ में । बहुला कथा को पौराणिक काल में सबसे महत्व्पूर्ण औरआसान व्रत माना गया है । यह व्रत इस साल अगस्त माह में होगा। पंचांग के अनुसार,भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 14 अगस्त दिन रविवार को रात 10 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है जो अगले दिन15 अगस्त सोमवार को रात 09 बजकर 01 मिनट तक मान्य है।ऐसे में उदयतिथि के आधार पर बहुला चतुर्थी व्रत 15 अगस्त को रखा जायेगा।


अर्थ बहुला व्रत कथा

                        द्विजोत्तम महर्षि धौम्यजी  से  युधिष्ठिर  बोले  कि  है धौम्यश्री! आप कृपा करके बहुला गौ और व्याघ्र का   संवाद मुझसे कहिए जिसको सुनकर प्राणियों के शारीरिक पापों का नाश होवे॥यह सुन द्विजोत्तम धौम्यजी  बोले कि  हे राजन। सतयुग में मथुरा निवास। द्विजोत्तम  विद्वान द्विज शर्मा नामक एक ज्ञानी  ब्राह्मण था। उस ब्राह्मण ने एक सफेद रंग की पीली पूछ वाली अत्यंत सीधी, सुंदर श्रृंगार युक्त और बहुत दूध देने वाली बहुला नामक गौ   को  पाला था। उस गाय की सेवा के लिए  गोभिल  नामक एक मनुष्य नियत था। हे राजन वह गाय  यमुना नदी के तट  पर कोमल घास को चरा  करती थी। एक बार हरी घास को ढूंढती हुई भ्रम वश वह एक गुफा में चली गई और वहां जाकर मार्ग को भूल  गई वहां पर कालरुप,  अत्यंत  भयानक , गुफा तुल्य मुख को खोल जी जीभ से  होठों को चटता हुआ  एक व्याघ्र  दिखा। देखते ही बहुला  भयभीत हो व्याकुल हो गई  और शीघ्रता से अपने स्थान के लिए लौटी उस समय  व्याघ्र  ने उसे घेर लिया और बोला कि बहुत काल के बाद तू मिली है,मांस को खाकर मेरी आत्मा अब तू मुझसे बचकर घर जाना चाहती है  मांस को खाकर मेरी आत्मा संतुष्ट होगी, अब बच कर तू कहां जाएग,। इस  प्रकार  व्याघ्र  के वचन को सुनकर काल के वश में आई  हुई  बहुला  अत्यंत विकल होकर रुदन करती हुई बोली हाय किस देवता या मनुष्य का स्मरण करो जो कालग्रास के रूप  से मुझ दीन को बचाए किसका पुण्य भारी है कि इस घोर जंगल में इसके सामने आए। हे व्याघ्र  मुझे अपने प्राण जाने का मुझे अपने प्राण जाने का कुछ भी शौक नहीं है कारण की यह संसार अनित्य है जो उत्पन्न हुआ है  उसका नाश अवश्य होगा इस हेतु से दुख करना बेकार है परंतु मुझे एक बड़ा दुख यह है कि अभी दूध पीने वाला मेरा दूध मुहा बच्चा दूध के प्यास  से पीड़ित हो  चिल्लाता  हुआ गोकुल में मेरे आने की राह देख रहा होगा उसकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है उसे छोड़ मैं इधर चली आई हूं उसकी क्या दशा होगी हे व्याघ्र यदि तू मेरी विनय को मान जा तो मैं अपने ह्रदय की चिंता को मिटा कर फिर तेरे निकट आ जाऊं अपने बालक के स्नेह से युक्त बिलखती हुई मुझ दीन दुखिया को मत मार  मैं शपथ खाकर कहती हूं कि यदि तू मुझे इस समय छोड़ देगा तो मैं बहुत जल्दी ही अपने बच्चे को दूध पिला कर दुलार प्यार करके उसके मुख को चाट  चूम कर निसंदेह शीघ्र ही तेरे पास आ जाऊंगी। तब तुम मुझे खा कर अपना संतोष कर लेना  हे व्याघ्र यदि मैं तेरे पास लौट कर ना आऊं तो मुझे घोर पाप लगे जो बालक से छिपाकर मिठाई व उत्तम पदार्थ खाने से होता है और जो महापाप दूसरे से बैर  रखने से, गुरु स्त्री के साथ भोग करने से होता है जो ब्रह्म हत्या से होता है वह पाप मुझे भी होगा  यदि मैं तेरे पास ना  आउ। जैसा दूसरे की स्त्री के साथ गमन करने अथवा विश्वासघात करने वह झूठ बोलने वह जीविका हरण करने का ,धर्म विक्षेद और निज धर्म को छोड़कर दूसरे के अच्छे या बुरे धर्म को ग्रहण करने का जो महापाप होता है वह सब पाप मुझे हो जो मैं लौट कर तेरे पास ना आउ और वेद निंदा से जो पाप होता है वह भी मुझे  हो।

इस बातें गाय के कथन को सुनकर।व्याघ्र बोला कि ऐसा कौन मूर्ख है जो सम्मुख आए हुए शिकार को छोड़कर बैठकर उसके वापस आने की प्रतीक्षा करें ऐसा तो ना देखा, ना सुना कि निश्चित बात को छोड़कर और अनिश्चित आसरा देखें जिसने ऐसा किया उसने तो निश्चित को कष्ट किया  ही, और अनिश्चित तो कष्ट है । यह सुनकर गाय बोले हे व्याघ्र सती ही पृथ्वी का आधार है और सब सत्य  ही करके स्थित रहता है यह व्याघ्र अब तुम किसी प्रकार का संदेह ना करो , मुझे छोड़ दो मैं अपने शपथ को अवश्य सत्य करूंगी मैं यहां से जाकर बच्चे को लाड प्यार कर सहेलियों के सुपुर्द करके शीघ्र जाऊंगी यह सुन व्याघ्र बोला की हे  बहूले ! तेरे कहने पर नीति के विरुद्ध में विश्वास करता हूं तू शीघ्र ही जाकर बच्चे को दूध पिला बच्चे को प्यार करके सखियों को सौंप कर शीघ्र आजा, तब तक मैं तेरी राह देखता हुआ यहां रहूंगा यह वचन व्याघ्र के सुनकर पुत्र प्रेम से व्याकुल रोती हुई गाय पर्वत की कंदरा से बाहर आई और कृष्ण की स्तुति करने लगी की हे   कृष्ण हे कृष्णा हे जीवेश मुझ पुत्र वत्सला गाय की रक्षा कीजिए हे जनार्दन जो मैंने यह प्रतिज्ञा की है उसका पालन करिए इस भाति दुखी और रोती हुई गाय को देखकर पेड़ भी विलाप करने लगे उधर गाय का बछड़ा अपनी मां को ना देख कर चारों ओर हाहाकार कर चिल्लाता रहा दुखित हो खोजता रहा इतने ही में बहुला अपने बच्चे की आवाज सुनकर मूर्छित हो गई और जमीन पर गिर गए पुनः शपथ को याद करके संभल कर उठी और धीरे-धीरे बच्चे के पास  खिन  मनसे आकर खड़ी हुई तब बच्चे ने मन मलीन माता को दुखी देखकर पूछा कि हे माता तू विक्षिप्त, अत्यंत व्याकुल और दुखी मालूम पड़ती है,इसका क्या कारण है सो  कह, यह सुन  गाय बोली हे वत्स! तू दूध पी ले मेरे दुख को पूछ कर क्या करेगा मैं तेरे प्यार से यहां आई हूं।

जिस तरह से मैं अपनी तृप्ति कर लूं आज जंगल में मुझे एक व्याघ्र मिला वह मुझे खाने को दौड़ा  उससे मैंने  अनेक प्रकार के  शपथ करके कहा कि मैं अपने बच्चे को दूध पिला कर  फिर  आऊंगी तब खा लेना सो हे पुत्र आज से मैं सदा के लिए अब तुमसे अलग होती हूं तू हमेशा अपने साथियों के संग गोकुल में रहना, दूध पी ले देर ना कर व्याघ्र मेरा रास्ता देखता होगा मां के इस भांति वचन सुनकर बछड़ा अत्यंत व्याकुल होकर विलाप करने लगा हे राजन माता बहुला अनेक भाति बच्चे को  प्यार करके और समझा कर अपनी सखियों को अपने पुत्र को  देकर बार-बार पीछे लौट लौट कर देखती हुई उस व्याघ्र के पास चली गई वहां पर विकराल भयंकर रूप व्याघ्र खड़ा हुआ राह देख रहा था सात्विक भाव युक्त आती हुई गाय को देखकर मन में विचार किया कि यह प्राणों के मोह को छोड़कर,   सत्य का पालन करने के लिए आई है।

जिस समय बहुला गाय व्याघ्र के पास आए  व्याघ्र बोला हे लोकमाता तू धन्य है तेरे दर्शन से मैं कृतार्थ हुआ इस प्रकार अनेक ममता भरे वचन कहे बहुला बोली  हे व्याघ्र तू बहुत देर से भूखा है मुझे खाकर अपनी आत्मा को तृप्त कर मैं इसीलिए शीघ्र ही यहां आई हूं यह सुनकर व्याघ्र बोला हे देवी !अब तुम मुझे माफ कर आज तेरे दर्शन से मैं व्याघ्र योनि से मुक्त हुआ जब व्याघ्र ने ऐसे वचन कहे तो उसी क्षण वह व्याघ्र सुंदर  गंधर्व रूप हो गया और बोला हे देवी मैं पूर्व जन्म का गंधर्व हूं। ब्राह्मण के श्राप से को योनि में प्राप्त व्याघ्र हुआ था आज उस श्राप से मुक्त होकर इंद्रपुर को जाता हूं इस भांति कहकर गाय को प्रणाम करके आकाश मंडल द्वारा वहां से चला गया । इधर गाय भी वहां से लौटकर अपने गोकुल में आई उसका बच्चा भी मां मां शब्द करके दौड़ा और दूध पीने लगा सखियां सब मिली देवता गण प्रसन्न होकर नगाड़ा बजाने लगे।

धौम्यजी राजा युधिष्ठिर से बोले हे राजन! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन चांदी की गाय और व्याघ्र बनाकर दोपहर के समय एकाग्र चित्र से विधि विधान युक्त पूजन करें अनेक भाटी के उत्तम पदार्थों का नैवेद्य लगावे, रात्रि में जागरण करे नृत्य गान मंगल विधान करें , धूप, दीप करके सुंदर पुष्प चढ़ाएं और धान सत्तू के सुंदर लड्डू और ऋतु फल का नैवेद्य लगाएं। सावधान मन से इस भांति पूजन करके प्रार्थना करें कि गोवे मेरे आगे-पीछे और ह्रदय में रहे मैं भी गाय के मध्य में रहा करो बहुला गाय के लिए बारंबार नमस्कार है। हे राजन युधिष्ठिर !यह उत्तमोत्तम  बहुला का सर्वोत्तम व्रत है इस व्रत को करके सुवर्ण की गाय बनाकर ब्राह्मण को देवें हे राजेंद्र! इस भारती पूजन करके तब व्रती भोजन करें। इस व्रत के करने से समस्त मनोकामना पूर्ण होती है जो प्रत्येक वर्ष बहुला के उत्तम व्रत को करके गो का पूजन करता है और गाय की प्रतिमा बनाकर दान करता है उसको बहुला के प्रसाद से अपुत्री को पुत्र लाभ होता है और यहां सांसारिक सुख भोग कर अंत में आपको परम गति मिलती है।

                                           ॥ इति बहुला व्रत कथा समाप्ता ॥



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